Self Control Dua For Desires In Hindi : Easy Tips
ख़्वाहिशें, नफ़्स और अल्लाह से बात: एक दिल से निकली दुआ
एक बार की बात है, रमज़ान का महीना था। सुबह-सुबह सहरी के वक़्त मैं उठने की कोशिश कर रहा था लेकिन नींद ऐसी प्यारी लग रही थी कि दिल कह रहा था – “एक मिनट और… बस एक मिनट।” और फिर वो एक मिनट पूरा घंटा बन गया। न सहरी की, न फज्र की नमाज़ पढ़ी, और फिर पूरे दिन खुद को कोसता रहा। Self Control Dua For Desires
ये पहली बार नहीं था। कई बार ऐसा होता कि दिल किसी चीज़ की तरफ खींचता है जो मैं जानता हूं सही नहीं। एक इंसान के लिए सबसे मुश्किल काम है – ख़्वाहिशों पर काबू पाना। जो दिल चाहता है, वहीं करना आसान लगता है, मगर जो अल्लाह चाहता है, उस पर चलना – वाक़ई में जिहाद है।
आप भी कभी अपने दिल से लड़े हैं? कभी ऐसा हुआ कि कोई चीज़ चाहिए थी, बहुत बुरी तरह चाहिए थी, लेकिन अंदर से आवाज़ आई – “नहीं, ये तुझसे अल्लाह नाराज़ हो जाएगा”?
यही तो असली इम्तिहान है।
जब दिल कहे “हाँ” और ईमान कहे “नहीं”
कभी-कभी नफ़्स ऐसा झपट्टा मारता है कि संभलने का मौका ही नहीं देता। जैसे ही कोई तन्हा लम्हा मिला, फोन उठाया और खुद को वहीं पाया जहां नहीं जाना था। फिर वही अफ़सोस, वही शर्म, वही गिल्ट।
“मैंने फिर वही कर लिया…”
पर एक दिन, मैंने ठान लिया – बस, अब नहीं।
मैंने अपने दिल की हालत अल्लाह के सामने रखी। बिल्कुल वैसे जैसे बच्चा मां के सामने सब कुछ बिन संकोच बता देता है। रोते हुए कहा:
“या अल्लाह, मैं कमज़ोर हूं, नफ़्स से हार जाता हूं, मुझे बचा ले।”
उस वक्त जो दुआ मेरे होंठों से निकली, वो सीधी दिल से निकली। और जब दिल से निकली दुआ अल्लाह तक जाती है, तो असर जरूर होता है।
नफ़्स की गुलामी से आज़ादी की दुआ
अब मैं आपसे एक दुआ शेयर करता हूं जो मैंने खुद पढ़ी, खुद जी, और इसके असर को महसूस किया:
اللهم إني أعوذ بك من شر نفسي ومن شر الشيطان وشركه
“या अल्लाह! मैं तेरी पनाह मांगता हूं अपनी नफ़्स की बुराई से और शैतान की चालों से।”
आप इस दुआ को बार-बार पढ़िए, खासकर जब दिल किसी हराम चीज़ की तरफ झुके।
मगर दुआ के साथ एक और चीज़ चाहिए – दिल से तौबा।
कभी-कभी हम तौबा कर लेते हैं, मगर फिर वही आदतें दोहरा देते हैं। क्यों? क्योंकि हम तौबा को सिर्फ अल्फ़ाज़ समझते हैं, मगर वो एक वादा होता है – खुद से, अपने रब से।

दिल को कंट्रोल करना आसान नहीं, लेकिन मुमकिन है
अब सच बताऊं, नफ़्स पर कंट्रोल करना कोई बटन दबाने जैसा नहीं। ये एक सफ़र है। हर दिन की एक जंग होती है। कभी जीतते हैं, कभी हारते हैं। मगर असली बात ये है – हार के बाद फिर उठना।
क्या आप भी कभी सोचते हैं – “मैं इतना बुरा क्यों हूं? सब मुझसे बेहतर हैं…”
भाई, यकीन मानिए, हम सब इस लड़ाई में हैं। बस फर्क इतना है कि कुछ लोग छुपा लेते हैं, और कुछ मान लेते हैं।
आप अकेले नहीं हैं।
मैं अब भी लड़ रहा हूं। हर रोज़। कभी निगाह बचानी होती है, कभी गुस्से पर काबू, कभी किसी को माफ करना।
अल्लाह सिर्फ नेक लोगों की नहीं, तौबा करने वालों की भी सुनता है
एक बात और सुन लो – अल्लाह को सिर्फ “पाकबाज़” लोग पसंद नहीं, बल्कि तौबा करने वाले ज्यादा अज़ीज़ हैं।
क़ुरआन में खुद कहा गया है:
“إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ التَّوَّابِينَ وَيُحِبُّ الْمُتَطَهِّرِينَ”
(सूरह अल-बक़रह 2:222)
“अल्लाह तौबा करने वालों और पाक रहने वालों को पसंद करता है।”
तो फिर शर्म किस बात की? गिरा है? फिर उठ। फिर दुआ कर। फिर से लड़।
तन्हाई में जो ख्याल आता है, उससे कैसे बचें?
तन्हाई। एक ऐसा लम्हा जब ना कोई देखने वाला होता है, ना कोई टोकने वाला। और यहीं सबसे बड़ा इम्तिहान शुरू होता है।
मैं जब कॉलेज में था, हॉस्टल की जिंदगी में ये तन्हा लम्हे आम बात थे। रात के 1-2 बजे, मोबाइल हाथ में और पूरा वक्त अपने नफ़्स से लड़ाई। कोई देख नहीं रहा, दिल कहता था – “बस एक बार और…” लेकिन दिल के अंदर कहीं ईमान भी था, जो कहता – “रुक जा यार… अल्लाह देख रहा है।”
शुरुआत में कई बार गिरा। बहुत बार। लेकिन फिर एक चीज़ ने बचाया – महसूस करना कि अल्लाह देख रहा है।
कोशिश कीजिए, जब भी ऐसा कोई पल आए, तो एक सवाल खुद से पूछिए:
“क्या मैं ये काम तब भी करूंगा अगर मेरे सामने मेरी मां बैठी हो?”
ये सवाल मेरा हथियार बन गया। और धीरे-धीरे, वो ख्याल जो पहले खींचते थे, अब कमजोर लगने लगे।
दुआ के साथ आदतें भी बदलनी होंगी
सिर्फ दुआ से काम नहीं चलता। दुआ के साथ कुछ काम भी करने होते हैं। जैसे कोई डॉक्टर सिर्फ दवा दे और मरीज़ बोले, “मैं खाऊंगा नहीं, अल्लाह ठीक कर देगा” – तो क्या इलाज होगा?
तो जब आप नफ़्स से लड़ना चाहें, ये पांच चीज़ें अपने रोज़मर्रा में डालो:
- फज्र की नमाज़ – ये सुबह की “रेसेट बटन” है।
- कुरआन की तिलावत – दिल को सुकून देती है।
- अच्छी सोहबत (company) – दोस्तों की बहुत बड़ी अहमियत होती है। ऐसे दोस्तों के साथ रहो जो तुम्हें सही रास्ते पर रखें।
- मोबाइल पर लिमिट लगाओ – स्क्रीन टाइम चेक करो, अप्प्स लिमिट करो।
- अपने वक़्त का हिसाब रखो – खाली वक़्त सबसे बड़ा दुश्मन होता है।
इन चीज़ों से आपकी लड़ाई आसान नहीं, मगर मुमकिन ज़रूर होगी।
क्या आप भी अंदर से टूट चुके हो? तो सुनो…
कभी-कभी लगता है – “बस अब और नहीं कर सकता। मैं बहुत थक चुका हूं।”
आपको लगता है कि आप अल्लाह से दूर जा चुके हो। शायद आपको लगता है कि अब दुआ भी असर नहीं करती। शायद ये भी सोच लिया कि “मेरे जैसे गुनहगार की दुआ कौन सुनेगा?”
भाई, बहन, ध्यान से सुनो।
अल्लाह थकता नहीं, तुम थकते हो।
तुम 100 बार गिरो, वो 101 बार उठाने को तैयार है। तुम बस एक बार “सच्ची नीयत” से तौबा करो। अल्लाह खुद कहता है:
“कहो, ऐ मेरे बंदों जिन्होंने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया है, अल्लाह की रहमत से मायूस मत हो। वह सारे गुनाह माफ़ कर देता है।”
(सूरह अज़-ज़ुमर 39:53)
तो फिर काहे का डर?
ख़्वाहिशों पर काबू पाने का एक राज़ – मोहब्बत का तसव्वुर
अब ज़रा सोचो। जब किसी से मोहब्बत होती है, तो क्या होता है? हम उनकी पसंद, उनकी नापसंद का ख्याल रखते हैं। जो वो पसंद नहीं करते, वो हम छोड़ देते हैं।
तो अगर हमें अल्लाह से मोहब्बत हो जाए…?
क्या हम फिर वही हराम चीज़ें करेंगे?

मेरे एक दोस्त ने एक बार कहा:
“मैं किसी बुरे काम से इसलिए बचता हूं, क्योंकि मैं सोचता हूं – क्या मेरा रब मुझसे खुश होगा?”
ये लाइन मेरे दिल में घर कर गई।
हर बार जब कोई गुनाह सामने आता, मैं ये सोचता – “अगर मैंने ये किया, तो मेरा रब मुझसे दूर हो जाएगा।” और बस, फिर रुक जाता।
मोहब्बत वाला रिश्ता बनाओ अल्लाह से। सिर्फ डर नहीं, प्यार भी रखो।
दुआ के असर को खुद महसूस किया
एक दिन की बात है, जब एक बहुत बड़ी ख़्वाहिश ने मुझे पकड़ लिया। दिमाग ने हार मान ली थी, पर दिल ने एक दुआ की:
“या अल्लाह, आज मैं सिर्फ तेरे लिए खुद को रोक रहा हूं। मुझे संभाल ले।”
और यकीन मानिए, उस दिन जो सुकून मिला, वो किसी नशे, किसी ख़्वाहिश में नहीं था।
वो अल्लाह की मदद थी।
वो एहसास कि “मैं गिरा नहीं” – ये खुद एक जीत थी।
आप भी ऐसा कर सकते हो। अभी से। इस पल से।
एक छोटी सी आदत जिसने ज़िंदगी बदल दी
अब मैं आपको एक राज़ बताता हूं – एक ऐसी छोटी सी आदत जिसने मेरी सोच ही नहीं, मेरा दिल भी बदल दिया।
हर रात सोने से पहले बस 3 मिनट तसबीह पढ़ना।
“अस्तग़फ़िरुल्लाह…”
हर बार जब ज़ुबान से ये निकला, दिल में वो सारी ग़लतियाँ घूम गईं। जैसे दिल खुद कह रहा हो – “तू फिर कर रहा है, लेकिन फिर भी माफ़ी मांग रहा है।”
और यही तो है – तवाज़ुन (balance)। गुनाह हो गया? माफ़ी मांगो। फिर कोशिश करो कि दोबारा ना हो। और फिर भी हो जाए? फिर से तौबा। बार-बार। जब तक रब सुन ले।
इस तसबीह ने मुझे सिखाया कि मैं खुद को जज ना करूं। मैं कोशिश करता रहूं, और बाक़ी अल्लाह पर छोड़ दूं।
अपने दिल से बात करना भी ज़रूरी है
हम दूसरों से तो घंटों बात कर लेते हैं। व्हाट्सएप, इंस्टा, कॉल्स। लेकिन क्या कभी खुद से बात की है?
एक दिन मैंने आईने में देखा और खुद से कहा:
“तू किसके लिए जी रहा है? ये जो तू बार-बार करता है, क्या तुझे वाकई खुशी देता है या सिर्फ थोड़ी देर का धोखा?”
खामोश हो गया था मैं। कोई जवाब नहीं था। लेकिन उस दिन से एक सिलसिला शुरू हुआ – खुद से सच्ची बात करना।
और यही आपको खुद से जोड़ता है। अल्लाह से जोड़ता है। क्योंकि जब आप खुद को समझते हो, तब ही तो तौबा भी दिल से होती है।
तौबा करने का सही तरीका – दिल से, दिखावे से नहीं
कई लोग पूछते हैं – “तौबा कैसे करें?”
कोई बड़ा अमल नहीं चाहिए। सिर्फ तीन चीजें चाहिए:
- पछतावा – जो हुआ, उस पर शर्मिंदा होना।
- इरादा – कि दोबारा नहीं करेंगे।
- फौरन छोड़ देना – जो चीज़ गलत है, उसे वहीं रोक देना।
बस इतना। दिखावे की ज़रूरत नहीं। सिर्फ अल्लाह और तुम।
और हाँ, अगर फिर गिर जाओ? फिर से तौबा। अल्लाह थकता नहीं। तुम भी मत थको।
गुनाह छूटे या ना छूटे, तौबा मत छोड़ो
ये शायद सबसे अहम बात है। गुनाह छूटे या ना छूटे, तौबा मत छोड़ो।
आप एक इंसान हैं। इंसान ग़लती करता है। लेकिन वो इंसान ही तो अल्लाह का सबसे अज़ीज़ बनता है जो ग़लती के बाद रोकर कहता है – “या रब, फिर से माफ़ कर दे।”
मैं आज भी परफेक्ट नहीं हूं। बहुत ग़लतियाँ होती हैं। लेकिन अब एक चीज़ बदली है – मैं तौबा छोड़ता नहीं।
और इस एक आदत ने मेरी ज़िंदगी को रोशनी दी है।

अब आपकी बारी है… क्या आप दिल से एक दुआ करेंगे?
आपने इतना पढ़ा। शायद कहीं ना कहीं खुद को इसमें पाया होगा।
तो अब आपकी बारी है।
बस एक बार, इस वक़्त, दिल से कहिए:
“या अल्लाह, मैं बहुत कमजोर हूं। मेरी ख़्वाहिशें मुझे बार-बार खींचती हैं। मगर मैं तुझसे मोहब्बत करता हूं। मुझे बचा ले, मुझे पकड़ ले। मुझे माफ़ कर दे।”
बस। इतना काफी है।
कभी-कभी एक सच्ची दुआ पूरे नसीब को बदल देती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
ज़िंदगी की लड़ाई आसान नहीं होती, खासकर जब दुश्मन आपका अपना नफ़्स हो। लेकिन याद रखिए – आप अकेले नहीं हैं। हम सब इसी लड़ाई में हैं।
जो फर्क पैदा करता है, वो है तौबा, दुआ, और एक सच्चा इरादा।
गिरना गुनाह नहीं, मगर गिरकर उठना ही बंद कर देना – ये गुनाह है।
अल्लाह से बार-बार बात करो। रोकर, हंसकर, टूटकर… जैसे भी हो। मगर दिल से।
यकीन रखो – कोई भी गुनाह, अल्लाह की रहमत से बड़ा नहीं।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
1. नफ़्स की बुराई से कैसे बचें?
– रोज़ाना तौबा करें, अच्छी सोहबत रखें, और हर बुरे ख्याल के वक्त “अस्तग़फ़िरुल्लाह” कहें।
2. क्या बार-बार तौबा करना जायज़ है?
– जी हां, अल्लाह बार-बार तौबा करने वालों से मोहब्बत करता है।
3. कोई खास दुआ जो ख़्वाहिशों पर काबू दिलाए?
– “اللهم إني أعوذ بك من شر نفسي ومن شر الشيطان وشركه” रोज़ पढ़ें।
4. गुनाह छूटता नहीं, क्या अल्लाह माफ करेगा?
– अगर दिल से तौबा करते रहो, तो अल्लाह जरूर माफ करेगा।
5. क्या मोबाइल की लत भी नफ़्स की गुलामी है?
– हां, अगर वो आपको गलत रास्ते पर ले जाए, तो उस पर कंट्रोल जरूरी है।